थम के सोच

June 18, 2025

नारी, तेरी प्रकृति तो ऐसी न थी तू कब इतनी विकृत हो गई, तू तो थी महिषासुर मर्दिनी तू स्वयं “महिष” कब हो गई।

कैसे भूली तू सीता चरित्र वो वन में भी सहचारी हो गई, तू तो थी संजीवनी सत्यवान की तू स्वयं “यम” कब हो गई।

कैसे भूली तू त्याग राधा का बिन पाए जो प्रेम को अमर कर गई, तू तो थी यशोदा सी पालनहारी एक मां की गोद ही सुनी कर गई।

कलि रहता था अब तक सोने में परीक्षित ने उसे वहीं जगह बताई, भरा मन, धन दौलत से कलि का “नारी की मति” अब नई जगह बनाई।

जननी होकर भी तो सुन ना पाई जगत की आह को, मुड़कर पीछे देख जरा अपने पतन की राह को, सोच, क्या यही प्रगति की परछाई है ?

अधिकार पाकर क्यूँ मुस्कान और सोनम तू बन आई है ?

क्यूँ मुस्कान और सोनम तू बन आई है ?

रचयिता
सीए वंदना अग्रवाल

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